(1) 29 मार्च, 1857 को मंगल पाण्डे नामक सिपाही ने बैरकपुर छावनी में अपने अफसरों पर हमला कर दिया। इस आरोप में उसे फाँसी पर लटका दिया गया। चंद दिन बाद मेरठ में तैनात कुछ सिपाहियों ने नए कारतूसों के साथ फौजी अभ्यास करने से इनकार कर दिया। सिपाहियों को लगता था कि उन कारतूसों पर गाय और सूअर की चर्बी का लेप चढ़ाया गया था। 85 सिपाहियों को नौकरी से निकाल दिया गया। उन्हें अपने अफसरों का आदेश न मानने के आरोप में 10-10 साल की सजा दी गई। यह 9 मई, 1857 की बात है।
(2) मेरठ में तैनात दूसरे भारतीय सिपाहियों की प्रतिक्रिया बहुत जबरदस्त रही। 10 मई को सिपाहियों ने मेरठ की जेल पर धावा बोलकर वहाँ बन्द सिपाहियों को आजाद करा लिया। उन्होंने अंग्रेज अफसरों पर हमला करके उन्हें मार गिराया। उन्होंने बन्दूक और हथियार कब्जे में ले लिए और अंग्रेजों की इमारतों व सम्पत्तियों को आग के हवाले कर दिया। उन्होंने फिरंगियों के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया।
इस प्रकार मेरठ में विद्रोह का शुभारम्भ हुआ।