मेरे इलाके में जो सहकारी समिति है उसके सदस्य मेरे क्षेत्र में रहने वाले किसान भाई हैं।
सहकारी समिति के सदस्य मिलकर अपने सदस्यों के हितों व उनकी आर्थिक उन्नति के लिए कई प्रकार के प्रयास करती हैं। इन समितियों का काम निजी व्यवसाय से अलग है । इसमें व्यक्तिगत लाभ के स्थान पर सामूहिक हित . पर विशेष जोर दिया जाता है।
इन समितियों के बनने से किसानों को कई प्रकार के लाभ होते हैं। जरूरत पडने पर उन्हें सस्ते दर पर ऋण मिल जाता है। इससे वे महाजनों के चंगुल में फंसने से बच जाते हैं। सस्ते दर पर वस्तुएँ मिल जाती हैं। उनकी फसल का अच्छा दाम मिल जाता है। यानी उन्हें फायदा ही फायदा होता है । शोषण से मुक्ति मिल जाती है। इससे उनकी आर्थिक दशा सुधर जाती है।
ऐसी समिति की सदस्यता स्वैच्छिक और खुली होने से कुछ स्वार्थी तत्व इसमें आसानी से प्रवेश कर जाते हैं। फिर वे अपना स्वार्थ सिद्ध करने की तिकड़म भिड़ाने में लग जाते हैं। ज्यादा मुनाफा वे खुद हड़प करने की जुगत ‘भिडाते रहते हैं। जब दूसरे सदस्य इसका विरोध करते हैं तो समिति में आए दिन झगड़ा-कोहराम मचने लगता है।
इससे समिति का विकास होने के बदले उसके अस्तित्व पर ही संकट के बादल मँडराने लगते हैं। बिहार में मत्स्यजीवी सहयोग समिति और व्यापार मंडल की असफलता के पीछे भी यही कारण थे । पर, हमारे क्षेत्र की सहकारी समिति में ऐसी समस्या फिलहाल नहीं है । गलत व्यक्ति को सदस्य बनाया ही नहीं जाता । इससे अभी इस समिति में शांति और उन्नति ही है।
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ऊपर दिये गये स्थान में दो ऐसे कार्यों को दर्शाएँ जो आप
(1) अकेले करते हैं
(2) जिसे औरों के साथ मिलकर ज्यादा आसानी से किया जा सकता है।