सहकारी समितियों के काम-काज में मश्किलें तब आने लगती हैं जब उनमें स्वार्थी चरित्र के व्यक्ति प्रवेश कर जाते हैं। वे स्वार्थी व्यक्ति अपने हितों के लिए समिति के गठन का उद्देश्य भी प्रभावित करने लगते हैं। ऐसे सदस्य समिति के माध्यम से अपना व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्ध करने लगते हैं। इससे जो लाभ सबको मिलना चाहिए वह कुछ लोगों को ही प्राप्त हो पाता है,। जब दूसरे सदस्य इसका विरोध करते हैं तो आपसी झगड़े होना शरू हो जाते हैं। तब, समिति का अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है।
इन मुश्किलों को हल करने के लिए नये सदस्यों की जाँच-पड़ताल करके ही उन्हें समिति का सदस्य बनाना चाहिए। यदि किसी व्यक्ति के बारे में कोई शंकास्पद बात मालूम हो तो उसे समिति से निकाल दिया जाना चाहिए।
यदि मैं मधुरापुर महिला दुग्ध उत्पादन समिति का अध्यक्ष होता. तो समिति को अच्छी तरह से चलाने के लिए मैं उसमें गलत व्यक्ति को प्रवेश नहीं लेने देता । यदि बाद में पता चलता कि कोई व्यक्ति संगठन में गलत है तो उसे फौरन निकाल देता । अधिक से अधिक लोगों को अपनी समिति से जोड़ने के लिए मैं समिति का अच्छी तरह से प्रचार करता । समिति के कार्यों का प्रदर्शन कर उसे जनता से जोड़ता ताकि समिति का अधिक-से-अधिक प्रचार हो और अधिक-से-अधिक लोग मेरी समिति से जुड़ सकें।