भारत के साथ ब्रिटेन सदैव 'व्यापार अधिशेष' की अवस्था में रहता था, क्योंकि ब्रिटेन से भारत भेजे जाने वाले माल की कीमत भारत से ब्रिटेन भेजे जाने वाले माल की कीमत से बहुत अधिक होती थी। इसका यह अभिप्राय है कि परस्पर व्यापार में सदैव ब्रिटेन को ही लाभ रहता था।