भारत में लोहा-इस्पात उद्योग के विकास का सकारण विवरण दें।
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लोहा-इस्पात उद्योग खनिज पर आधारित उद्योगों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण उद्योग है। जिसपर आधुनिक युग के छोटे-बड़े सभी उद्योग आश्रित हैं। भारत में लौह-इस्पात उद्योग का इतिहास अत्यन्त प्राचीन है। दिल्ली स्थित जंगरहित लौह स्तम्भ भारत में प्राचीन काल से ही निर्मित होने वाले उत्तम किस्म के इस्पात का एक सुन्दर उदाहरण है। आधुनिक लोहा और इस्पात कारखानों की स्थापना सन् 1779 ई. में तमिलनाडु के दक्षिण में अर्काट जिले में की गई थी। सभी कच्चे मालों की उपलब्धता सुनिश्चित नहीं होने के कारण यह कारखाना असफल रहा। पुनः 1874 ई. में पश्चिम बंगाल में कुल्टी नामक स्थान पर बराकर लौह कम्पनी स्थापित हुई जिसे ब्रिटिश सरकार ने सन् 1882 में अपने नियंत्रण में ले लिया 1918 ई. में हीरापुर में एक इस्पात कारखाने की स्थापना की गई।

1936 ई. में इसे कुल्टी कारखाने में मिलाकर 1952 में इण्डियन आयरन एण्ड स्टील कम्पनी का नाम दिया गया। स्वतंत्रता के पूर्व श्री जमशेद जी टाटा के द्वारा एक महत्वपूर्ण प्रयास के तहत 1907 में साकची नामक स्थान पर एक इस्पात कारखाना की स्थापना की गई जो अभी टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी के रूप में देश के निजी क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण कारखाना है।

स्वतंत्रता के बाद भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत 6 नवीन कारखानों की स्थापना की गई है। ये हैं-राउरकेला (उड़ीसा), भिलाई (मध्य प्रदेश), विशाखापत्तनम् (आंध्र प्रदेश), बोकारो, दुर्गापुर, सलेम। उड़ीसा के पाराद्वीप और कर्नाटक के विजयनगर में अन्य कारखानों का निर्माण हो रहा है। नवीन औद्योगिक नीति के तहतं निजी क्षेत्र में इस उद्योग का तेजी से.विकास हो रहा है।

भारत में लोहा-इस्पात उद्योग का विकास बहुत तेजी गति से हो रहा है। इसका प्रमुख कारण यह है कि यहाँ उच्च कोटि का हेमाटाइट और मैग्नेटाइट लौह-अयस्क मिलता है, जिसमें 50% 70% तक लौहांश पाया जाता है। झारखण्ड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में इसका बहुल्य है। कोयले की प्राप्ति रानीगंज, झुरिया, गिरिडीह और बोकारो कोयला क्षेत्रों से की जाती है। गालक के रूप में प्रयुक्त होनेवाले खनिजों की भी यहाँ कमी नहीं है।

उड़ीसा के सुन्दरगढ़, झारखण्ड के राँची, छत्तीसगढ़ के दुर्ग और मध्य प्रदेश के सतना तथा कर्नाटक के शियोगा जिलों में चूनापत्थर के भण्डार मिलते हैं। डोलोमाइट, मैंगनीज और ऊष्मा सह पदार्थ (refractory materials) लौह अयस्क तथा कोयला क्षेत्रों के निकट सुलभ हैं। यही कारण है कि इन सारी आवश्यक सुविधाओं से लबरेज होने के कारण भारत में लोहा-इस्पात उद्योग का विकास बहुत ही तेजी के साथ हो रहा है। आवश्यकता इस बात की है कि इस विकास की गति को लम्बे समय तक बनाए रखना आवश्यक है। जिससे यहाँ इस उद्योग के विकास की गति और तेज हो सके। जिसके फलस्वरूप यहाँ के लोगों (मजदूरों) कोअधिक-से-अधिक रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सकेंगे और देश का आर्थिक विकास भी अपनी चरम सीमा पर होगा।
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