उदारीकरण-उद्योग तथा व्यापार को लालफीता शाही के अनावश्यक प्रतिबंधों से मुक्त करके अधिक प्रतियोगी बनाना ही उदारीकरण कहलाता है। –
निजीकरण- देश की स्वस्थ अर्थव्यवस्था को बनाये रखने हेतु देश के अधिकतर उद्योगों के नियंत्रण पर सरकारी एकाधिकार को कम कर या समाप्त कर उसके स्वामित्व को निजी हाथों में सौंप देना ही निजीकरण कहलाता है।
वैश्वीकरण-वैश्वीकरण का अर्थ है देश की अर्थव्यवस्था को विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ना, अर्थात् प्रत्येक देश का अन्य देशों के साथ बिना किसी प्रतिबंध के पूँजी, तकनीकी एवं व्यापारिक आदान-प्रदान ही वैश्वीकरण है।
भारत सरकार की नवीन आर्थिक नीतियाँ वैश्वीकरण को परिभाषित करने में लगी हुई हैं। हमारा उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था का विश्व की अन्य अर्थव्यवस्थाओं के साथ तारतम्य बनाना है।
इसके अन्तर्गत सभी वस्तुओं के आयात में खुली छूट, सीमा शुल्क में कमी, विदेशी पूँजी की मुक्त प्रवाह की अनुमति, सेवा क्षेत्र विशेषकर बैंकिंग, बीमा और जहाजरानी क्षेत्रों में विदेशी पूंजी निवेश की छूट और रुपयों को पूर्ण परिवर्तनशील बनाना है। इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति हेतु भारतीय अर्थव्यवस्था का तेजी से वैश्वीकरण हो रहा है। परिणामस्वरूप कई क्षेत्रों में उत्साहवर्द्धक उपलब्धियां प्राप्त हुई हैं। विदेशी मुद्रा का भण्डार काफी बढ़ गया है, किन्तु निर्यात और कृषि दरों में गतिरोध उत्पन्न हुआ है।
विश्वव्यापी मंदी के बावजूद चीन की छोड़कर अन्य विकासशील देशों की तुलना में भारत में सकल घरेलू उत्पाद की दर अधिक है। किन्तु सामाजिक क्षेत्रों की प्रगति संतोषजनक नहीं है। रोजगार सृजन के अवसर कम हुए हैं। गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम प्रभावित हुआ है। अनाज का विपुल भंडार रहते हुए भी भारी संख्या में भारतवासी कुपोषण के शिकार हैं। इसका मुख्य कारण उनमें क्रयशक्ति की कमी है।
वैश्वीकरण स स्वदेशी उद्योगों विशेषकर कुटीर एवं लघु उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। यह बात स्पष्ट रूप से कही जा सकती है कि वैश्वीकरण से हमारी अर्थव्यवस्था पर और औद्योगिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।