भारत में सूती कपड़े या चीनी उद्योग का विकास किन क्षेत्रों में और किन कारणों से हुआ है ? विस्तृत विवरण दें।
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भारत सूती वस्त्र का निर्माता प्राचीनकाल से रहा है। मुगलकालीन भारत में ढाका का मलमल विश्वविख्यात था। परन्तु इंग्लैण्ड के औद्योगिक क्रांति ने इसे बर्बाद कर दिया।

आज फिर सूती वस्त्र उद्योग देश का बड़ा उद्योग बन गया है। औद्योगिक उत्पादन में इसका 20% योगदान है। इस उद्योग में लगभग डेढ़ करोड़ लोग लगे हैं। भारत में कुल निर्यात में इसका योगदान 25% है।

सूती-वस्त्र उद्योग की स्थापना सबसे अधिक महाराष्ट्र और गुजरात राज्य में हुआ है। महाराष्ट्र में 122 कारखाने स्थापित हैं। केवल मुंबई महानगर में 62 कारखाने स्थापित हैं। गुजरात दूसरा बड़ा वस्त्र उत्पादक राज्य है। यहाँ 120 कारखाना स्थापित हैं जिनमें 72 कारखाने अहमदाबाद में स्थापित हैं।

महाराष्ट्र और गुजरात राज्य में वस्त्र उद्योग के विकास का मुख्य कारण है कपास की पर्याप्त उपलब्धत, कपास एवं मशीनरी के आयात-निर्यात की सुविधा मुंबई और कांडला बन्दरगाह से प्राप्त है। कुशल कारीगर की उपलब्धता है।

इसके अतिरिक्त मध्यप्रदेश, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, प. बंगाल में भी सूती-वस्त्र उद्योग का अच्छा विकास हुआ है। इन जगहों पर सस्ते श्रमिक, परिवहन के साधन जल-विद्युत की सुविधा उपलब्ध होने के कारण विकास में मदद मिला है।

चीनी उद्योग कृषि पर आधारित उद्योग है। इसका कच्चा माल गन्ना हैं। चीनी उद्योग को गन्ना उत्पादक क्षेत्र में ही स्थापित करना उपयुक्त होता है। इसीलिए चीनी मिलें गन्ना उत्पादक ‘राज्यों में मुख्य रूप से स्थापित की गयी हैं। उत्तर भारत में उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा राज्यों में चीनी की मिलें स्थापित की गयी हैं।उत्तर प्रदेश में चीनी की लगभग 100 मिलें हैं। यहाँ इसके लिए निम्नांकित सुविधाएं उपलब्ध है
  • गन्ने की अच्छी खेती
  • परिवहन की अच्छी व्यवस्था,
  • सस्ते श्रमिक और घरेलू बाजार।
1960 तक यह देश का प्रथम उत्पादक राज्य था। परंतु अब उत्पादन घट कर एक-चौथाई पर आ गया है।
बिहार राज्य में चीनी की बीसों मिलें स्थापित हैं, परंतु उत्पादन कम है। उत्तर भारत में पंजाब और हरियाणा राज्य में भी एक दर्जन से अधिक चीनी की मिलें स्थापित हैं। दक्षिण भारत में महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु में चीनी की मिलें स्थापित . हैं। महाराष्ट्र में चीनी मिलों के लिए निम्नांकित सुविधाएँ प्राप्त हैं-
  • गन्ने की प्रतिहेक्टेयर उपज अधिक, रस का अधिक मीठा होना और रस अधिक . निकलना।
  • उपयुक्त जलवायु।
  • यहाँ चीनी की मिलें स्वयं गन्ने की खेती करती हैं।
  • समुद्री तट के कारण निर्यात की सुविधा। चीनी उत्पादन में आज महाराष्ट्र देश में प्रथम स्थान प्राप्त कर चुका है।
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