जब से भारत में औद्योगिकीकरण की शुरूआत हुयी है, तब से भारत में उद्योगों का विकास बहुत तेजी से हुआ है। उद्योगों के विकास होने से यहाँ आर्थिक विकास हुआ है और लोगों को रोजगार के भी अवसर अधिक मात्रा में उपलब्ध हुए हैं। लेकिन उद्योगों के विकास होने से एक ओर अच्छे परिणाम देखने को मिल रहे हैं तो दूसरी ओर इसके बुरे परिणाम भी हमें झेलने . . पड़ रहे हैं। उद्योगों के विकास होने से प्रदूषण को बढ़ावा मिला है। जो मानव और जीव-जन्तुओं के लिए हानिकारक हैं। लेकिन विगत वर्षों में सरकार द्वारा उचित कदम उठाए गये हैं।
उद्योगों से होनेवाले प्रदूषण को कम करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए
- कारखानों में ऊंची चिमनियाँ लगायी जाएँ, चिमनियों में इलेक्ट्रोस्टैटिक अवक्षेपण, स्क्रबर । उपकरण तथा गैसीय प्रदूषक पदार्थों को पृथक करने के लिए उपकरण लगाए जाएँ।
- तापीय विद्युत की जगह जलविद्युतं का उपयोग कर वायु प्रदूषण में कमी लायी जा सकती है।
- नदियों में गर्म जल तथा अपशिष्ट पदार्थों को प्रवाहित करने से पहले उनका शोधन कर लिया जाए। औद्योगिक कचरों से मिले जल की भौतिक, जैविक तथा रासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा शोधन कर पुनःचक्रण (recycling) द्वारा पुनः प्रयोग योग्य बनाया जाए। ..
- मशीनों, उपकरणों तथा जेनरेटरों में साइलेंसर लगाकर ध्वनि प्रदूषण को रोका जाए। कारखानों में कार्यरत श्रमिकों को कानों पर शोर नियंत्रण उपकरण पहनने के लिए प्रेरित किया जाए।
- भूमि पर औद्योगिक कचरों को बहुत दिनों तक जमा होने से रोका जाए। _ अतः स्पष्ट है कि कल-कारखाने वाले उद्योगों के बढ़ने से पर्यावरण प्रदूषण बढ़ता है। प्राकृतिक पर्यावरण की गुणवत्ता घटने लगती है। इसलिए इसे रोकने के लिए समुचित कदम उठाए जाने चाहिए।