पाइपलाइन परिवहन का उपयोग मुख्यतः तरल पदार्थों जैसे पेट्रोलियम के साथ ही साथ गैसों के परिवहन के लिए किया जाता है। पाइपलाइन के द्वारा मरुस्थलों, जंगलों, पर्वतीय क्षेत्रों, मैदानी और यहाँ तक कि समुद्र के नीचे से होकर भी परिवहन किया जाना संभव है।
भारत में पाइपलाइन का भविष्य मुख्यतः तेल एवं प्राकृतिक गैस उद्योग पर ही निर्भर है। देश में कच्चे तेलों को उत्पादन क्षेत्रों से शोधनशालाओं तक तथा शोधनशालाओं से उत्पादों को बाजार तक पाइपलाइन द्वारा ही भेजा जाता है।
आजकल ठोस पदार्थों जैसे खनिज को तरल अवस्था में परिवर्तित कर पाइपलाइनों द्वारा ले जाये जाने लगा है।
देश में पेट्रोलियम उत्पादन क्षेत्रों में वृद्धि तथा आयात में वृद्धि के साथ ही पाइपलाइन मार्ग का विस्तार होने लगा है। देश के पश्चिमी भागों में इसकी सघनता अधिक है। 1985 ई. तक देश में पाइपलाइनों का कुल विस्तार 6535 किमी. था, जो. 2004 ई. तक 18546 किमी. हो गया।
भारत में पाइपलाइन के वितरण को मुख्यतः दो वर्गों में रखा गया है-
(क) तेल पाइपलाइन-
- कच्चा तेल पाइपलाइन
- तेल उत्पादन पाइपलाइन।
(ख) गैस पाइपलाइन-
- एल. पी. जी. पाइपलाइन
- एच..बी. जे. पाइपलाइन।
भारत में कच्चा तेल परिवहन के लिए पूर्वी तथा उत्तर-पूर्वी भारत और पश्चिमी भारत में पाइपलाइनें बिछाई गई हैं। जिसका विवरण निम्न है-
- पूर्वी एवं उत्तर-पूर्वी भारत में डिग्बोई से बरौनी एवं हल्दिया तक जिसे पाराद्वीप तक बढ़ाया जाना है।
- पश्चिम में कांडला, अजमेर होते हुए पानीपत तक एवं जामनगर से चाकसू तक। चाकसू से यह पानीपत एवं मथुरा तक दो भागों में बाँटा गया है।
- दक्षिण में विशाखापट्टनम, विजयवाड़ा एवं हैदराबाद के बीच।
- गुजरात में हजीरा से उ. प्र. कवे जगदीशपुर तक। यह 1730 किमी. लंबा है। इसे एच. बी. जे. गैस पाइपलाइन कहा जाता है।