भारतीय संविधान के मुख्य लक्षणों की विवेचना कीजिये।
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भारतीय संविधान के मुख्य लक्षण
भारतीय संविधान के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं-
(1) संघवाद - संघवाद से आशय है - देश में एक से ज्यादा स्तर की सरकारों का होना और प्रत्येक स्तर की सरकार को शक्तियाँ व अधिकार संविधान से ही मिलते हों। भारतीय संविधान में केन्द्र तथा राज्य स्तर पर शक्तियों का बंटवारा तीन सूचियों के माध्यम से किया गया है। ये हैं- संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची। संघ सूची में राष्ट्रीय महत्व के विषय हैं। इन पर कानून बनाने का अधिकार केन्द्र सरकार को दिया गया है। राज्य सूची में प्रादेशिक महत्व के विषय हैं। इन पर कानून बनाने का अधिकार राज्य स्तर की सरकारों को दिया गया है। और समवर्ती सूची में दिये गये विषयों पर दोनों ही सरकारों को कानून बनाने का अधिकार दिया गया है। इस प्रकार इन सूचियों द्वारा यह बताया गया है कि कौनसे स्तर की सरकार किन मुद्दों पर कानून बना सकती है।
(2) संसदीय शासन पद्धति- भारतीय संविधान में संसदीय शासन पद्धति अपनायी गयी है। सरकार के सभी स्तरों पर प्रतिनिधियों का चुनाव लोग स्वयं करते हैं। संविधान में सभी वयस्क नागरिकों को मताधिकार प्रदान किया गया है। प्रत्येक व्यक्ति स्वयं भी चुनाव लड़ सकता है, चाहे उसकी सामाजिक पृष्ठभूमि कैसी भी क्यों न हो। ये प्रतिनिधि जनता के प्रति जवाबदेह होते हैं।
(3) शक्तियों का बंटवारा- संविधान के अनुसार राज्य के तीन अंग हैं-विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका। तीनों अंगों को शासन के पृथक् पृथक् कार्य सौंपे गये हैं। विधायिका को कानून निर्माण करने, कार्यपालिका को उन कानूनों को लागू करने एवं शासन चलाने तथा न्यायपालिका को न्यायालयों की व्यवस्था करने का कार्य सौंपा गया है। सत्ता के दुरुपयोग को रोकने के लिए तीनों अंगों की शक्तियाँ एक-दूसरे से अलग रखी गयी हैं। इस बंटवारे के आधार पर प्रत्येक अंग दूसरे अंग पर अंकुश रखता है। इस प्रकार सत्ता संतुलन बना रहता है।
(4) मौलिक अधिकार- भारतीय संविधान में सत्ता के दुरुपयोग को रोकने के लिए नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान किये गये हैं। ये अधिकार हैं- (1) समानता का अधिकार, (2) स्वतन्त्रता का अधिकार, (3) शोषण के विरुद्ध अधिकार, (4) धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार, (5) सांस्कृतिक और शैक्षणिक अधिकार तथा (6) संवैधानिक उपचार का अधिकार।
(5) धर्मनिरपेक्षता- भारतीय संविधान एक धर्मनिरपेक्ष संविधान है। इसमें राज्य अधिकृत रूप से किसी भी धर्म को राजकीय धर्म के रूप में बढ़ावा नहीं देता है।
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