निरंकुशता क्या है? संविधान में इसका क्या हल होना चाहिए?
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निरंकुशता से आशय है- किसी अंकुश या प्रतिबंधता का न होना। राजतंत्र में राजा की सत्ता प्रायः निरंकुश होती है। इस तरह की स्थिति लोकतांत्रिक समाजों में भी उस स्थिति में पैदा हो सकती है, जहाँ बहुमत वाला गुट लगातार ऐसे फैसले लागू करता है जिसमें अल्पसंख्यकों की सहमति नहीं होती और उनका नुकसान होता है। इसे बहुमत की निरंकुशता कहा जाता है।
संविधान में बहुमत की निरंकुशता का हल- संविधान में इसके हल के लिए दिए गए नियमों में इस बात का खयाल रखा जाना चाहिए कि अल्पसंख्यकों को किसी ऐसी चीज से वंचित न किया जाए जो बहुसंख्यकों के लिए सामान्य रूप से उपलब्ध है। अल्पसंख्यकों पर बहुसंख्यकों की इस निरंकुशता या दबदबे पर प्रतिबंध लगाना भी संविधान का महत्त्वपूर्ण कार्य है, यह दबदबा अंतर - सामुदायिक वर्चस्व का हो सकता है और अंतः सामुदायिक वर्चस्व का भी हो सकता है।
तीसरे, संविधान को हमें ऐसे फैसले लेने से भी रोकना चाहिए जिनसे उन बड़े सिद्धान्तों को ठेस पहुँचती हो, जिसमें देश आस्था रखता है, जैसे-दलगत राजनीति के स्थान पर किसी तानाशाह को शासन सौंपना, एक अच्छा संविधान इस तरह के उन्माद से भी बचाता है।
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