बिरसा मुंडा कौन थे ? उन्होंने जनजातीय समाज के लिए क्या किया ?
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बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर सन् 1874 ई. को छोटानागपुर प्रमंडल के तमाड़ थानान्तर्गत उलिहातु गाँव के निकट एक छोटे से क्षेत्र ‘चलकद’ में हुआ था। – उसके पिता का नाम सुगना मुंडा एवं माता का नाम कदमी था ।

बिरसा की शिक्षा दीक्षा चाईबासा के एक जर्मन मिशन स्कूल में हुई थी। शुरू में कुछ मुंडाओं के साथ मिलकर उसने ईसाई धर्म को स्वीकार कर लिया, पर बाद में ईसाई धर्म से असंतुष्ट होकर फिर मुंडा बन गया। उसके मन में अंग्रेजों एवं जमींदारों के प्रति आक्रोश की भावना ने ही मुंडा विद्रोह को जन्म दिया ।

सन् 1895 में बिरसा को उसके कुलदेवता.’सिंगबोगा’ से एक नये धर्म के प्रतिपादन की प्रेरणा मिली, जिसके अनुसार उसने अपने आपको भगवान का अवतार घोषित किया और अंग्रेजी शासन का अंत करने का बीड़ा उठा लिया । उसने अपने कई अनुयायियों के साथ अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी और रांची के एक जेल में 2 जून, 1900 को हैजा की बीमारी से उसकी मृत्यु हो गयी । पर उसके द्वारा शुरू किया गया मुंडा विद्रोह जारी रहा। परिणामस्वरूप अंत में मुंडा आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को झुका दिया और उन्होंने जनजातीय समाज को संरक्षण दिया व विशेष सुविधाएँ भी।
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