गैर आदिवासियों एवं अंग्रेजों के प्रति आदिवासियों का विरोध क्यों हुआ?
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अंग्रेज ज्यादा से ज्यादा लगान प्राप्त करने के फेर में जंगलों तक भी पहुँच गये । उन्होंने आदिवासियों को उनकी जमीन से बेदखल कर दिया । आदिवासी मानते थे कि उनके पूर्वजों ने जंगलों को साफ कर उसे खेती के लायक बनाया है, इसलिए जमीन के मालिक वे स्वयं हैं। इसके लिए उन्हें किसी को किसी तरह का लगान या कर देने की आवश्यकता नहीं है। जबकि अंग्रेजों ने नई लगान व्यवस्थाओं के तहत उनके द्वारा जोती जाने वाली जमीनों को भी सरकार दस्तावेजों में दर्ज कर लिया और उनके ऊपर भी अन्य किसानों की तरह सलाना लगान की राशि तय कर दी।

लगान की राशि चुकाने के लिए उनकी जमीनें नीलाम होने लगी या फिर महाजनों के कब्जे में जाने लगी। अब वे झूम खेती नहीं कर पाते थे। अलग-अलग जमीनों पर खेती करने की उनको आजादी भी नहीं रही । सरकारी कर्मचारियों के उन तक पहुंचने का भी उन पर बुरा असर हुआ । कर्ज लेने वालों की संख्या बढ़ने से अब उनके क्षेत्रों में गैर आदिवासी सेठ, महाजन एवं सूदखोरों का भी प्रवेश हुआ। ये महाजन व साहुकार हमेशा इस प्रयास में रहते थे। कि किस तरह इनके जमीनों को हथियाया जाए और इन्हें बंधुआ मजदूर बनाया जाए।

अत: गैर आदिवासियों एवं अंग्रेजों द्वारा अपनायी गयी शोषण व जुल्म की नीतियों के फलस्वरूप आदिवासियों का उनके प्रतिरोध हुआ और वे शस्त्र उठाने को विवश हो गये।
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