जादोनांग की तेरह वर्षीय चचेरी बहन गिंडाल्यू ने अपने भाई की भूमिगत योजना के तहत नागा राज्य की स्थापना के प्रयास में उसका सक्रिय साथ दिया । एक हत्या के मामले में जब जादोनांग को फंसाकर अंग्रेजों ने 29 अगस्त, 1929 को, उसे फांसी पर चढ़ा दिया तो मिंडाल्यू ने इस आंदोलन को जारी रखा। 1932 में इस आंदोलन को दबाकर गिंडाल्यू को आजीवन कारावास की सजा दी गई । सन् 1947 में आजादी मिलने के बाद उसे रिहा कर दिया गिया । उसने अंग्रेजी सरकार के दमनकारी कानूनों के प्रति जनजातियों में अवज्ञा का भाव जगाया और इस प्रकार वह गाँधीजी के सविनय अवज्ञा आन्दोलन की मुख्य धारा से अपने आन्दोलन को जोड़ने में सफल रही। – कई अन्य आदिवासी महिलाओं ने भी उपनिवेशवाद के खिलाफ आदिवासियों के विद्रोह में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ये महिलाएँ सैनिक कार्रवाई करने से लेकर विद्रोह का नेतत्व करने तक के कार्य में पुरुषों का साथ देती थीं। राधा, हीरा, फूलों, झानो, बिरसा मुंडा के दोस्त गया मुंडा की पत्नी ‘मानी बुई’, बेटी थीगी, नागी और लेम्बू तथा उसकी दो बहुओं ने भी अंग्रेजों के खिलाफ गड़ासा, तलवार, कुल्हाड़ी, लाठी और लोहे की छड़ का प्रयोग किया।
ताना भगत आंदोलन में भी जतरा भगत के बाद लीथो उराँव नाम की जनजातीय महिला ने नेतृत्व संभाला। गोंड जनजाति की महिला राजमोहिनी देवी ने 1940 के दशक के उत्तरार्द्ध से 1950 के दशक के आरम्भ तक आंदोलन का नेतृत्व संभाला । आदिवासी महिलाओं ने जनजातीय विद्रोह में जमकर मोर्चा संभाला था।