न्यूक्लिक अम्ल की एक श्रृंखला के अनुक्रम से संबंधित जानकारी को इसकी प्राथमिक संरचना कहते हैं। प्रोटीन के समान न्यूक्लिक अम्लों की द्वितीयक संरचना भी होती है। जेम्स वाटसन तथा फ्रांसिस क्रिक ने DNA की द्विकुंडलनी त्रिविमीय संरचना दी।
DNA की वाटसन-क्रिक संरचना के अनुसार पॉलिन्यूक्लिओटाइड की दो
सर्पिल श्रृंखलाएँ या
स्ट्रेण्ड क्षारक इकाइयों के मध्य हाइड्रोजन बन्धन द्वारा जुड़कर परस्पर समानान्तर रूप से
कुण्डिलत अवस्था में विद्यमान रहती हैं। एक पॉलिन्यूक्लिओटाइड श्रृंखला के पिरिमिडीन क्षारक तथा दूसरी पॉलिन्यूक्लिओटाइड श्रृंखला के प्यूरीन क्षारक के मध्य ही हाइड्रोजन बन्ध बन सकता है। इसके पश्चात् प्रयोगों से ज्ञात हुआ कि प्रकृति में क्षारक
ऐडेनीन (A) केवल थायमीन (T) के साथ दो हाइड्रोजन बन्धों द्वारा जुड़ सकता है तथा
ग्वानीन (G) केवल साइटोसीन (C) के साथ तीन H बन्धों द्वारा जुड़ सकता है। इस प्रकार, 'T तथा A' और 'G तथा C' क्षारकों के युग्म बनते हैं अर्थात् T तथा A एक-दूसरे के पूरक हैं और G तथा C एक-दूसरे के पूरक हैं। DNA में T : A तथा G : C अनुपात 1:1 पाया गया, इससे उपरोक्त युग्मों की पुष्टि हो जाती है। अतः यह कहा जा सकता है कि DNA की दो पॉलिपेप्टाइड श्रृंखलाओं के मध्य निश्चित क्षारक युग्मों की उपस्थिति के कारण एक श्रृंखला (रज्जुक) दूसरी श्रृंखला की पूरक होती है, अर्थात् यदि एक पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला में क्षारक अनुक्रम ज्ञात हो तो दूसरी श्रृंखला का क्षारक अनुक्रम स्वतः ही निश्चित हो जाता है। इसे निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है-

