गुरूबीजाणुधानी (बीजाण्ड) की संरचना (Structure of Ovule)- पुष्पीय पादपों की बीजाण्ड एक सवृंत छोटी संरचना है जो निषेचन के पश्चात बीज में परिवर्तित हो जाती हैं।
(i) बीजाण्डवृंत (Funicle) - बीजाण्ड के बाह्य आवरण को अध्यावरण कहते है। जो बीजाण्ड एक वृंत (डंठल) जैसी सरंचना द्वारा अपरा से जुड़ा रहती है। बीजाण्डवृंत जिस स्थल पर बीजाण्ड से जुड़ा रहता है उसे नाभिका (Hilum) कहते हैं।
(ii) अध्यावरण (Integument) -बीजाण्ड के बाहू आवरण को अध्यावरण कहते हैं, जो बीजाण्ड का संरक्षी आवरण होता है। निषेचन के पश्चात अध्यावरण बीज चोल (Seed coat) का निर्माण करते हैं। आवृतबीजी पादपों में प्रायः दो अध्यावरण होते है, परन्तु लीची, अरण्डी में तीन अध्यावरण होते हैं। लीची में खाने योग्य भाग तीसरा अध्यावरण होता है जिसे एरिल (Aril) कहते हैं।
(iii) बीजाण्डद्वार (Micropyle) -बीजाण्ड के उपरी सिरे पर एक छिद्र जैसी संरचना पायी जाती है जिसे बीजाण्डद्वार कहते है। बीजाण्डद्वार को छोड़कर अध्यावरण बीजाण्ड को चारों ओर से घेरे रहता है। निषेचन के समय परागनलिका बीजाण्डद्वार से प्रवेश करती है। बीजाण्डद्वारी सिरे के ठीक विपरीत निभाग (Chalaza) होता है।
(iv) बीजाण्डकाय (Nucellus) - यह बीजाण्ड की मृदूतकी संरचना है जो अध्यावरणों के द्वारा धिरी रहती हैं। बीजाण्डकाय का उपयोग प्रायः पोषण के लिए किया जाता है। एकबीजपत्री पादपों में यह एक पतली परत के रूप में बीज में पाया जाता हैं जिसे पेरिस्पर्म (Perisperm) कहते है।
(v) भ्रूणकोष (Embryo sac) - यह बीजाण्ड की मुख्य संरचना है जो बीजाण्डकाय द्वारा धिरी रहती है।