गुरूबीजाणु मातृकोशिकाओं से अर्धसूत्री विभाजन द्वारा अगुणित गुरूबीजाणु बनाने की प्रक्रिया को गुरूबीजाणु जनन कहते हैं। गुरूबीजाणुजनन में चार गुरूबीजाणु बनते हैं जो प्रायः रेखिक चतुष्क रूप में विन्यासित रहते है। इन चार गुरुबीजाणुओं में प्रायः एक गुरुबीजाणु ही सक्रिय रहता है जो मादा युग्मकोद्भिद (भ्रूणकोष) की प्रथम कोशिका होती है। शेष तीन गुरूबीजाणु नष्ट हो जाते है। इस प्रकार एक गुरूबीजाणु से भ्रूणकोष बनने के विकास को एक बीजाणुज (Monosporic) कहते हैं।

भ्रूणकोश अण्डाकार, बहुकोशिकीय सरंचना होती है। यह बीजाण्डकाय में घंसी होती है। भ्रूणकोश एक पतली पेक्टिन और सेलुलोज की झिल्ली से ढका होता है।


भ्रूणकोश के अन्दर साधारणतया सात कोशिकायें पायी जाती हैं। एक बड़ी कोशिका मध्य में, तीन बीजाण्डद्वार की तरफ एवं तीन निभाग (Chalaza) की तरफ होती है। बीजाण्ड द्वार (Microphyle) की तरफ पायी जाने वाली कोशिकाओं को सामूहिक रूप से अण्डसमुच्चय तथा निभाग की ओर पायी जाने वाली कोशिकाओं को प्रतिमुखी (Antipodal) कोशिकाये कहते है। सभी कोशिकायें एक-दूसरे से जीवद्रव्य तन्तु द्वारा जुड़ी रहती हैं। इस प्रकार एक भ्रूणकोश में सात कोशिकाये व आठ केन्द्रक होते हैं।