परागकोश के बीजाणुजन उत्तक (sporogenous tissue) की कोशिकाएं पराग मातृ कोशिका या लघुबीजाणु मातृ कोशिका (microspore mother cell) में परिवर्तित हो जाती है। परागमातृ कोशिकाओं में एक अर्द्धसूत्री कोशिका विभाजन होने से चार अगुणित केन्द्रक बनते हैं, फिर कोशिका द्रव्य विभाजन के फलस्वरूप चार अगुणित कोशिकाएँ बनती हैं, जो प्रायः लघु बीजाणु चतुष्टय या चतुष्क (microspore tetrad) के रूप में व्यवस्थित होती हैं। परागकोश के परिपक्व होने पर चतुष्टय के लघु बीजाणु एक दूसरे से अलग हो जाते हैं, अब इन्हें परागकण (Pollen grains) कहते हैं। परागकण प्रायः 25-50 माइक्रोमीटर व्यास वाले व गोलाकार होते हैं। इनके चारों ओर स्पोरोपोलेनिन का बना बाह्य चोल व सेल्यूलोज तथा पेक्टिन का बना अन्तः चोल होता है। बाह्य चोल में छिद्र पाये जाते हैं जिन्हें जनन छिद्र कहते हैं।

परागकण जब परागकोश से बाहर आते हैं तब वे प्रायः (लगभग 60% पादपों में) दो कोशिकीय अवस्था में होते हैं। कुछ पादपों में (लगभग 40% पादपों में) ये तीन कोशिकीय अवस्था में होते हैं। प्रारम्भ में एक कोशिकीय परागकण में जब विभाजन होता है तो इससे दो असमान कोशिकाएं बनती हैं। बड़ी कोशिका को कायिक (Vegetative) तथा तरूपी छोटी कोशिका को जनन कोशिका (Generative cell) कहते हैं। जनन कोशिका शीघ्र ही कायिक कोशिका में समाहित हो जाती है तथा यहाँ यह विभाजित होकर दो नरयुग्मकों (Male gametes) का निर्माण करती हैं।