मानव नेत्र का अभिनेत्र लेन्स रेशेदार जेलीवत पदार्थ का बना होता है। इसकी वक्रता में कुछ सीमाओं तक पक्ष्माभी पेशियों द्वारा रूपांतरण किया जा सकता है। अभिनेत्र लेन्स की वक्रता में परिवर्तन होने पर इसकी फोकस दूरी भी परिवर्तित हो जाती है। नेत्र की यह क्षमता उसकी समंजन क्षमता कहलाती है।
अभिनेत्र लेन्स की वक्रता में परिवर्तन होने पर इसकी फोकस दूरी भी परिवर्तित हो जाती है। नेत्र की यह क्षमता उसकी समंजन क्षमता कहलाती है।
जब पेशियाँ शिथिल होती हैं तो अभिनेत्र लेन्स पतला हो जाता है। इस प्रकार इसकी फोकस दूरी बढ़ जाती है। इस स्थिति में हम दूर रखी वस्तुओं को स्पष्ट देख पाने में समर्थ होते हैं।
जब हम आँख के निकट की वस्तुओं को देखते हैं तब पक्ष्माभी पेशियाँ सिकुड जाती हैं। इससे अभिनेत्र लेन्स की वक्रता बढ़ जाती है। अभिनेत्र लेन्स अब मोटा हो जाता है। परिणामस्वरूप अभिनेत्र लेन्स की फोकस दूरी घट जाती है। इससे हम निकट रखी वस्तुओं को स्पष्ट देख सकते हैं।