ग्रामीण क्षेत्रों में अभी बहुत बदलाव नहीं आया । अभी भी यहाँ के पुजारी कर्मकांड, जातपात, आडम्बर आदि का विरोध नहीं करते । कारण कि यदि वे ऐसा करें तो उनकी रोजी ही समाप्त हो जाय । दूसरी बात है कि गाँव के ऊँची जातियाँ उनका समर्थन भी करती है । इसलिये कानून की परवाह किये बिना वे लगातार लकीर के फकीर बने हुए है । आर्य समाज का जबतक बोलबाला था तब तक इसमें कुछ कमी आई थी । लेकिन अब वे निरंकुश हो गये हैं। सरकार भी कुछ नहीं कर पाती ।