मध्यकालीन भारत में भक्त आंदोलन के उद्भव और विकास में कई परिस्थितियाँ जिम्मेदार थीं । वैदिक पंडा-पुरोहित कर्मकांडों को आधार बनाकर जनता का शोषण करते थे । जो कर्मकांडों के व्यय को वहन करने योग्य नहीं थे, उन्हें नीच करार दिया गया । इस कारण समाज में दलितों की संख्या बढ़ गई । इन्हीं बुराइयों को दूर करने में भक्त संत लगे रहे । यद्यपि आगे चलकर इनमें भी दो मतावलम्बी हो गये, लेकिन धर्म सुधार की जिस मकसद से ये संत बने थे उसमें कोई अन्तर नहीं आया । इसलिये कहा गया है कि कुछ अपवादों को छोड़कर भक्त संतों की एक समान विशेषताएँ थीं।