शंकराचार्य ने भारत की चारों दिशाओं में मठों का निर्माण कर भारत को सांस्कृतिक रूप में एक सूत्र में बाँधने का काम किया । वे चारों मठ थे:उत्तर में बद्रीकाश्रम, दक्षिण में शृंगेरी, परब में परी तथा पश्चिम में द्वारिका । इस प्रकार हर भारतीय जीवन में एक बार इन मठों में जाकर पूजा अर्चना करना अपना एक कृत्य मानने लगा । इससे सम्पूर्ण भारत धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से एक सूत्र में बंध गया । उस शंकराचार्य को आदि शंकराचार्य कहते हैं। अभी हर मठ के अलग-अलग शंकराचार्य होते हैं, ताकि परम्परा कायम रहे । एक शंकराचार्य की मृत्यु के बाद दूसरे शंकराचार्य नियुक्त हो जाते हैं।