सांस्कृतिक रूप से सभी धर्मावलम्बियों को और करीब लाने के लिये हम सभी मिलजुलकर संस्कृत उत्सव मनाएँगे । उनके शादी-विवाह आदि खुशी के मौके पर उनको अपने यहाँ बुलाएँगे और उनके बुलावे पर उनके यहाँ जाएँगे । ऐसा करना क्या है, सदियों से ऐसा होता भी आया है और अभी भी हो रहा है । यदि राजनीतिक नेता चुप रहें तो कहीं कोई गड़बड़ी नहीं होगी।