हाँ, किसी प्रजाति की व्यष्टियों के भौगोलिक विलगन से नई स्पीशीज़ (प्रजाति) बन सकती है। यदि हम मान लें कि एक समान स्पीशीज़ की समष्टि दो अलग-अलग समूहों में विभक्त (बँट) हो गई है जो आपस में जनन करने में असमर्थ हों तो इस स्थिति में हम उन्हें दो स्वतन्त्र स्पीशीज कह सकते हैं।
उदाहरणार्थ- भृंगों की एक स्पीशीज भोजन उपलब्ध होने के कारण यदि परिणामतः समष्टि का आकार भी विशाल हो जाता है। परन्तु व्यष्टि भृंग अपने भोजन के लिए जीवन-भर अपने आस-पास की कुछ झाड़ियों पर ही निर्भर करते हैं अतः वे बहुत दूर नहीं जाते हैं तो भृंगों की इस विशाल समष्टि के आस-पास उप-समष्टि होगी तथा भृंगों के बीच जनन प्रायः इन उप-समष्टियों के सदस्यों के मध्य ही होगा। परन्तु कुछ साहसी भृंग भोजन या साथी की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकते हैं अथवा कौआ एक भृंग को एक स्थान से उठाकर बिना हानि पहुँचाए दूसरे स्थान पर छोड़ सकता है। दोनों ही स्थितियों में अप्रवासी भृंग स्थानीय समष्टि के साथ जनन करेगें। परिणामतः अप्रवासी भृंग नयी समष्टि में प्रविष्ट हो जाएँगे। परन्तु यदि इस प्रकार की दो उपसमष्टियों के मध्य एक विशाल नदी आ जाए तो दोनों समष्टियाँ और अधिक पृथक हो जाएगी। दोनों के मध्य जीन-प्रवाह का स्तर और भी कम हो जाएगा। उत्तरोत्तर पीढ़ियों में आनुवंशिक विचलन द्वारा प्रत्येक उप-समष्टि में विभिन्न परिवर्तनों का संग्रहण हो जाएगा और इस प्रकार एक नई स्पीशीज बन जाएगी।