मानवों से तुलना करने पर जीवाणु के शरीर की योजना सरलतर होती है। इसका अर्थ यह नहीं होता कि जीवाणुओं की तुलना में मानव अधिक विकसित होते हैं। जीवन के लक्षणों के आधार पर यह निश्चित करना कठिन है कि जीवाणु अथवा मानव में से कौन अधिक विकसित है। साधारणतः विकास का अर्थ पीढ़ियों में विविधता से है तथा विविधता का रूप पर्यावरणीय चयन द्वारा निर्धारित होता है। साथ ही, यह भी नहीं माना जा सकता कि नई उत्पन्न हुई जाति पुरानी जाति से उत्तम है। केवल प्राकृतिक वरण तथा आनुवांशिक विलगन एक साथ मिलकर ऐसी समष्टि के निर्माण को प्रेरित करते हैं जो मूल जीव के साथ जनन नहीं कर सकती हो। जैव-विकास के अन्तर्गत लम्बे समयांतराल में अधिक जटिल शारीरिक अभिकल्पों का प्रकट होना ही विकासीय परम्परा है। विकास के लिए यदि अभिकल्पों की जटिलता को ही मानक मान लिया जाए तो मानव जीवाणुओं की तुलना में अधिक विकसित हैं क्योंकि जीवाणु के शरीर की योजना सरलतम है तथा मानव के शरीर की योजना जटिलतम है। शरीर की जटिलतम योजना कई पीढ़ियों तक भिन्नताओं के जमाव का नतीजा होती है और ज्यादा भिन्नताओं के जमाव में ज्यादा समय लगता है तो मानव को ज्यादा विकसित मन जा सकता है। यदि विकास के लिए विषम परिस्थितियों में जीवित रह पाने की योग्यता को मानक मान लिया जाए तो जीवाणु मानव की अपेक्षा बहुत विकसित है। क्योंकि मानव केवल उपयुक्त दशाओं में ही जीवित रह सकता है जबकि जीवाणु सर्वाधिक विषम दशाओं में भी जीवित रह पाते हैं। अनेक जीवाणु सल्फर के झरनों और ज्वालामुखी के आस-पास स्थित गड़ढ़ों में भी रहते हैं। इस आधार पर जीवाणु मानव की अपेक्षा अधिक विकसित प्रतीत होते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि मानव विकास के उच्चतम बिन्दु पर नहीं है बल्कि अन्य जातियों की अपेक्षा कुछ लक्षणों के आधार पर विकास की शृंखला में उत्पन्न एक और प्रजाति है।