मृदा अपरदन के मुख्य कारक हैं-जलवायु, वनस्पति विस्तार, स्थलरूप, भूमि की ढाल एवं मानवीय क्रियाएँ ।
वनों की कटाई, पशुचारण, आकस्मिक तेज वर्षा, तेज पवन, अवैज्ञानिक – कृषि पद्धति तथा बाढ़ के प्रभाव से मृदा का अपरदन ज्यादा होता है । तेज पवन या पानी के बहाव से मैदानी या चौरस क्षेत्रों में सतही अपरदन होता है। जबकि उबड़-खाबड़ क्षेत्रों में क्षुद्रनालिका या अवनालिका अपरदन होता
मृदा अपरदन के कारण मृदा के मौलिक गुणों एवं उर्वरता में कमी आने लगती है । इसका असर फसलों, फलों एवं साग-सब्जियों के उत्पादन पर पड़ता है । इसलिए मृदा संरक्षण के उपायों को अपनाना जरूरी है । मृदा संरक्षण के लिए हमें निम्न उपाय करने पड़ेंगे
- पर्वतीय क्षेत्रों में समोच्चरेखी खेती करना ।
- पर्वतीय ढलानों पर वृक्षारोपण करना ।
- बंजर भूमि पर घास लगाना ।
- फसल चक्र तकनीक को अपनाना ।
- खेती के वैज्ञानिक तकनीक को अपनाना।
- जैविक खाद का प्रयोग करना ।