उन्नीसवीं सदी के आखिर तक खुद महिलाएँ भी सुधारों के लिए बढ़-चढ़ कर प्रयास करने लगी थीं। यथा-
(1) उन्होंने किताबें लिखीं, पत्रिकाएँ निकालीं, स्कूल और प्रशिक्षण केन्द्र खोले तथा महिलाओं को संगठित किया।
(2) भोपाल की बेगमों ने अलीगढ़ में लड़कियों के लिए प्राथमिक स्कूल खोला। बेगम रुकैया सखावत ने कलकत्ता तथा पटना में मुस्लिम लड़कियों के लिए स्कूल खोले ।
(3) पंडिता रमाबाई ने ऊँची जातियों की हिन्दू महिलाओं की दुर्दशा पर एक किताब लिखी तथा पूना में एक विधवा गृह की स्थापना की।
(4) महिलाएँ बीसवीं सदी की शुरुआत से महिलाओं को मताधिकार, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ और शिक्षा के अधिकार के बारे में कानून बनवाने के लिए राजनीतिक दबाव समूह बनाने लगी थीं।
(5) कुछ महिलाओं ने 1920 के दशक के बाद विभिन्न प्रकार के राष्ट्रवादी और समाजवादी आन्दोलनों में हिस्सा भी लिया।