उन्नीसवीं सदी की शुरुआत से सामाजिक रीति- रिवाजों और मूल्य-मान्यताओं से सम्बन्धित बहस-मुबाहिसे और चर्चाओं का स्वरूप बदलता गया। इसका मुख्य कारण था-संचार के नए तरीकों का विकास। पहली बार किताबें, अखबार, पत्रिकाएँ, पर्चे और पुस्तिकाएँ छप रही थीं। ये चीजें न केवल पुराने साधनों के मुकाबले सस्ती थीं बल्कि उन पाण्डुलिपियों के मुकाबले ज्यादा लोगों की पहुँच में भी थीं। इससे सामान्य जनता भी उन चीजों को पढ़ सकती थी। बहुत से लोग अपनी भाषाओं में लिख सकते थे और अपने विचार व्यक्त कर सकते थे। नए शहरों में तमाम तरह के सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक और धार्मिक मुद्दों पर पुरुषों (और कभी-कभी महिलाओं) के बीच चर्चा होती रहती थी। ये चर्चाएँ आम जनता तक पहुँच सकती थीं और सामाजिक परिवर्तन के आन्दोलनों से जुड़ी होती थीं।