मखाने की खेती करने वाले किसानों के पास ज्यादातर अपना तालाब नहीं होता है, वे किराए पर तालाब लेकर मखाने की खेती करते हैं। उसके बाद फिर इसके लिए खाद, कीटनाशक आदि की व्यवस्था करना, गुड़ी निकलवाना, फिर गड़ियों से लावा निकलवाने आदि में उनका काफी खर्च आता है। जिस कारण उन्हें पैसे की तुरंत जरूरत होती है। फिर मखाने को मंडी तक लाने में लगने वाला भाड़ा, फिर मखानों की पैकिंग का खर्च भी अधिक होता है। इसलिए वे लोग मखाने को आढतिया को ही बेच देते हैं।