उन्नीसवीं सदी में समाज और धर्म-सुधारकों तथा हिन्दू रूढ़िवादियों के बीच सतीप्रथा, एकेश्वरवाद, ब्राह्मण पुजारी वर्ग और मूर्तिपूजा को लेकर तीव्र वाद-विवाद हो रहा था। बंगाल में इस प्रकार के वाद-विवाद के कारण अनेक पुस्तिकाओं और समाचार-पत्रों का प्रकाशन हुआ। इनमें लोग विभिन्न प्रकार के तर्क प्रस्तुत करने लगे।