भारतीय किसानों के दृष्टिकोण से नील की खेती उनके लिए फायदेमंद नहीं थी। मजबूरन, उन्हें अपनी जमीन के एक बेहतर हिस्से पर इसकी खेती करनी पड़ती थी। अंग्रेज अधिकारी इसके लिए उन्हें बाध्य करते – थे। किसान तो हमेशा खाद्य फसल ही उपजाना चाहते थे। इससे उन्हें उस साल के लिए खाने का अनाज मिलता था और बुरे दिनों के लिए कुछ अनाज वे बचाकर भी रख लेते थे।
नील की खेती धान के मौसम में ही की जाती थी इससे धान के फसल में देर हो जाती थी। साथ ही, जिस खेत में नील की खेती होती थी उसमें फसल कटने के बाद उस साल कोई और फसल नहीं उगायी जा सकती थी। इसका असर होता कि किसानों के पास अनाज की कमी हो जाती थी। जब सूखा या बाढ़ के कारण फसलों का उत्पादन कम होता था तो किसानों के पास पहले का रखा अनाज नहीं होता था। ऐसे में या तो महाजनों से कर्ज लेते थे या भूखे रहते थे।