परागकण के वर्तिकाग्र पर पहुँचने से लेकर परागनलिका के बीजाण्ड में प्रवेश करने तक की सभी घटनाओं को पराग स्त्रीकेसर संकर्षण (Pollen pistil Interaction) कहते हैं। इस दौरान निम्नलिखित घटनायें होती हैं-
(i) सुयोग्य पराग की पहचान - सुयोग्य पराग की पहचान करने की क्षमता स्त्रीकेसर/वर्तिकाग्र में होती है। यह पहचान स्त्रीकेसर एवं पराग के रासायनिक घटकों की पारस्परिक क्रिया द्वारा होती है। इस पारस्परिक क्रिया में स्त्रीकेसर सुयोग्य पराग को स्वीकृत एवं अयोग्य पराग को अस्वीकृत करती है।
(ii) परागकणों का वर्तिकाग्र पर अंकुरण एवं पर युग्मकोद्भिद का
विकास-
• जब परागकण वर्तिकाग्र पर पहुँचता है तब वह प्रायः दो कोशिकीय (एक कायिक कोशिका एवं एक जनन कोशिका) अवस्था में होता है।
• वर्तिकाग्र के स्रावों से उद्दीपित होकर सुयोग्य रागकण का अंकुरण प्रारम्भ होता है।
• परागकण का अन्तःचोल जनन छिद्र से एक परागनलिका के रूप में बाहर की ओर वृद्धि करता है।
• पराग नलिका में कायिक कोशिका का केन्द्रक नलिका केन्द्रक केरूप में एवं जमन कोशिका दो मर युग्मकों के रूप में आ जाते हैं।
• यह पराग नलिका वर्तिकाग्र व वर्तिका को भेदते हुए अण्डाशय में स्थि बीजाण्ड में बीजाण्डद्वार से प्रवेश करती है।
• पराग नलिका के शीर्ष पर नलिका केन्द्रक एवं दो नर युग्मक होते हैं जिन्ने पराग नलिका एक सहाय कोशिका के तन्तुरूप उपकरण से होते हुए भ्रूणकोश में मुक्त करती है।