(a)

(b) पुष्पी पादपों के लिए बीज निम्नलिखित प्रकार से लाभकारी होते हैं-
(i) नयी संतति निर्माण-बीजों के अंकुरण से पादप की नयी संतति बनती है।
(ii) भ्रूण संरक्षण-बीज का कठोर आवरण बीज में स्थित युवा भ्रूण को संरक्षण प्रदान करता है।
(iii) प्रकीर्णन-बीज वायु, जल, पक्षी व अन्य जन्तुओं द्वारा प्रसारित (प्रकीर्णित) होते हैं। इसके लिए बीजों में विशेष संरचनाएं या अनुकूलन पाये जाते हैं। इससे पादप प्रजातियों का प्रसार नये क्षेत्रों में होता है।
(iv) भोजन संग्रहण-बीजों में पर्याप्त भोजन संग्रहित रहता है। जो अंकुरण एवं नवोद्भिद् के पोषण में काम आता है। जब तक की नवोद्भिद् स्वयं प्रकाश संश्लेषण न करने लग जाये।
(v) गुणन-पुष्पी पादपों में गुणन का एक माध्यम बीज है।
(vi) विभिन्नताएँ-बीज लैंगिक प्रजनन द्वारा उत्पन्न होते हैं, अतः इनमें आनुवांशिक पुनसँयोजन के कारण बहुत सी विभिन्नताएँ भी उत्पन्न होती हैं।
(vii) चिरस्थिरता - बीज भविष्य के पादप को प्रतिकूल परिस्थितियों से बचाता है। इसमें स्थित प्रसुप्त एवं अक्रियाशील भ्रूण कठोर कवच (बीजावरण) द्वारा संरक्षित रहता है जो लम्बे समय तक जीवनदाय बना रहता है।