(a) द्विबीजपत्री भ्रूण का विकास (Dicot Embryo)-
द्विबीजपत्री पादपों में भ्रूण का अध्ययन हेन्सटीन ने कैप्सेला पादप में किया था। इसमें युग्मनज अनुप्रस्थ विभाजन द्वारा दो कोशिकाएं बनाता है। बीजाण्डद्वार की ओर स्थित कोशिका को आधारी (Basal) कोशिका तथा निभाग की ओर स्थित कोशिका को अग्रस्थ (Apical) कोशिका कहते हैं।
आधारी कोशिका में अनेक अनुप्रस्थ विभाजनो द्वारा 6 से 10 कोशिकायुक्त लम्बी संरचना बनती है, जिसे निलम्बक (Suspensor) कहते हैं। निलम्बक की आधारी कोशिका फूलकर चूपकांग का कार्य करती है तथा अंतिम कोशिका स्फीतिका (Hypophysion) कहलाती है, जो मूलगोप का निर्माण करती है।
इसी दौरान अग्रस्थ कोशिका दो एक दूसरे के समकोण पर अनुदैष्यं विभाजनों द्वारा विभाजित होकर चार भ्रूणीय कोशिकाओं का निर्माण करती है। ये चारों कोशिकायें पुनः एक अनुप्रस्थ विभाजन द्वारा विभाजित होकर आठ कोशिकाओं का अष्टांशक (Octant) बनाती है। इनमें से हाइपोफाइसिस की ओर वाली, चार कोशिकायें हाइपोबेसल (Hypobasal) तथा आगे की चार कोशिकायें एपीबेसल (Epibasal) कोशिकायें होती हैं। हाइपोबेसल कोशिकाओं से मूलांकुर (Epicotyl) व अधोबीजपत्र (Hypocotyl) तथा एपीबेसल कोशिकाओं से प्रांकुर (Plumule) व बीजपत्र (Cotyledon) बनते हैं। भ्रूण वृद्धि के साथ हृदयाकार हो जाता है, जिसकी दोनों पालियों से बीजपत्र बनते हैं।
(b) निषेचन में सत्य संलयन से भ्रूण तथा त्रिसंलयन से. भ्रूणपोष बनता है। हालांकि सत्य संलयन पहले होता है परन्तु सत्य संलयन से बनने वाले भ्रूण को पोषण देने के लिए भ्रूणपोष का विकास पहले होता है। ऐसा होने से ही भ्रूण पोषण प्राप्त करके विकसित हो पाता है

