प्रत्यावर्ती धारा जनित्र का स्पष्ट एवं नामांकित चित्र बनाइए।### आरेख की सहायता से किसी ac जनित्र की संरचना और कार्यविधि की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
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$\quad \quad$प्रत्यावर्ती धारा जनित्र (AC Generator) यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करने वाली विद्युत-मशीन को प्रत्यावर्ती धारा जनित्र कहते हैं।
$\quad \quad$सिद्धान्त (Principle)-यह विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त पर कार्य करता है अर्थात् जब किसी कुण्डली को समरूप चुम्बकीय क्षेत्र में घुमाया जाता है तो इसमें प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है।
$\quad \quad$कार्यप्रणाली (Working System)-प्रत्यावर्ती धारा जनित्र में एक कुण्डली होती है जो रोटर शैफ्ट (roter shaft) पर आरोपित होती है। कुण्डली का घूर्णन अक्ष चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में लम्बवत् है। कुण्डली (जिसे आर्मेचर कहते हैं) को किसी एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में किसी बाह्य साधन द्वारा यांत्रिक विधि से घूर्णन कराया जाता है। कुण्डली के घूमने से इसमें चुम्बकीय पलक्स परिवर्तित होता है जिससे  कि कुण्डली में एक विद्युत वाहक बल प्रेरित होता है। कुण्डली के सिरों को सर्पी वलयों (slip rings) तथा ब्रशों (brushes) की सहायता से एक बाह्य परिपथ से जोड़ा जाता है।
$\quad \quad$जब कुण्डली को एकसमान कोणीय चाल $\omega$ से घूर्णन कराया जाता है तो चुम्बकीय क्षेत्र सदिश B तथा क्षेत्रफल सदिश A के बीच कोण $\theta$ का मान किसी समय पर = t है (यह मानते हुए कि जब $\left.t=0, \theta=0^0\right)$ है। परिणामस्वरूप, कुण्डली का प्रभावी क्षेत्रफल जिसमें चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ होकर गुजरती हैं, समय के साथ परिवर्तित होता है। किसी समय t पर फ्लक्स है-
$\phi_{ B }= BA \cos \theta= BA \cos \omega t$
फैराडे के नियम से. N फेरों वाली घूर्णी कुण्डली के लिए प्रेरित विद्युत वाहक बल होगा--
$\varepsilon=- N \frac{ d \phi_{ B }}{ dt }=- NBA \frac{ d }{ dt }(\cos \omega t)$
अतः विद्युत वाहक बल का तात्क्षणिक मान है-
$\varepsilon= NBA \omega \sin \omega t$..................(1)
$\because \frac{ d }{ dt }(\cos \omega t )=-\omega \sin \omega t$
$\quad \quad$यहाँ NBA $\omega$ विद्युत वाहक बल का अधिकतम मान है, जो $\sin$$\omega t= \pm 1$पर प्राप्त होता है। यदि हम NBA $\omega$ को $\varepsilon_0$ से दर्शाएँ, तब
$\varepsilon=\varepsilon_0 \sin \omega t$...................(2)
$\quad \quad$क्योंकि ज्या फलन का मान +1 से -1 के बीच बदलता है, विद्युत वाहक बल का चिन्ह या ध्रुवता समय के साथ बदलता है। चित्र II से स्पष्ट है कि जब $\theta=90^{\circ}$ या $\theta=270^{\circ}$ होता है तो विद्युत वाहक बल अपने चरम मान पर होता है क्योंकि इन बिन्दुओं पर फ्लक्स में परिवर्तन की अधिकतम है। क्योंकि धारा की दिशा आवर्ती रूप से परिवर्तित होती है। इसलिए धारा को प्रत्यावर्ती धारा (a.c.) कहते हैं।
क्योंकि $\omega=2 \pi f$, समीकरण (2) को हम निम्न प्रकार से लिख सकते हैं-
$\varepsilon=\varepsilon_0 \sin 2 \pi ft$.......................(3)
यहाँ v, जनित्र की कुण्डली (आर्मेचर) के परिक्रमण की आवृत्ति है।
$\quad \quad$समीकरण (2) तथा (3) विद्युत वाहक बल का तात्क्षणिक मान बतलाते हैं तथा $\varepsilon_,+\varepsilon_0$तथा $-\varepsilon_0$ के बीच आवर्ती रूप से परिवर्तित होता है।
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