जब देश में आजादी के आंदोलनों का दौर चल रहा था, तब राजस्थान भी इससे अछूता नहीं रहा। इस समय राजस्थान के अजमेर पर अंग्रेजों का प्रत्यक्ष अधिपत्य था जबकि शेष राजस्थान पर देशी राजा-महाराजाओं का शासन था। अतः यहाँ स्वतंत्रता संघर्ष का स्वरूप थोड़ा भिन्न था। धीरे-धीरे अंग्रेजों ने देशी रियासतों के काम-काज में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया था, जिससे कि यहाँ के सामाजिक ताने-बाने में फर्क आया । इन सबके विरुद्ध यहाँ के किसानों एवं जनजातियों ने आवाज बुलंद की एवं संघर्ष किया। कालान्तर में विभिन्न रियासतों में प्रजामंडलों की स्थापना हुई। इन प्रजामंडलों ने लोगों में राजनीतिक चेतना जागृत की एवं उन्हें एकीकृत किया। इस प्रकार, किसान एवं जनजाति आंदोलन राष्ट्रीय आंदोलन बनते गए और राजस्थान में भी स्वतत्रता को माग बढ़ा।