मध्यकाल में राजस्थान के जागीरदारों और किसानों के आपसी संबंध मधुर थे। अत: विभिन्न जागीरदार क्षेत्रीय किसानों को अपनी जागीर में बसने हेतु प्रोत्साहित करते थे। परन्तु, बाद में अंग्रेजों एवं राजाओं के मध्य सहायक संधियाँ हुई जिससे कि अंग्रेजों ने राजाओं से नगद लगान वसूलना प्रारम्भ किया। राजाओं ने यह राशि जागीरदारों से तथा जागीरदारों ने संबंधित किसानों से वसूलनी प्रारंभ की। अंगेजों के संगत में आकर पहले राजा, फिर जागीरदार भोग-विलास एवं ऐशोआराम में संलिप्त हो गए। इस तरह के खर्चों का बोझ भी किसानों पर डाला जाने लगा। इन सभी दिक्कतों से परेशान होकर किसानों ने अपना विरोध जताने के लिए विभिन्न आंदोलन किए।