संप सभा-संप सभा की स्थापना गोविंद गुरु ने सन् 1883 ई. में की, जिसका प्रथम अधिवेशन 1903 में हुआ। गोविंद गुरु ने इस सभा की स्थापना आदिवासियों को संगठित करने के लिए की थी। गोविंद गुरु के अनुयायी भगत कहलाते थे, अतः संप सभा को भगत आंदोलन भी कहा गया है। संप का अर्थ है एकजुटता, प्रेम और भाईचारा । संप सभा का मुख्य उद्देश्य समाज सुधार था। संप सभा की शिक्षाएँ थीं-रोजाना स्नानादि करो, यज्ञ एवं हवन करो, शराब मत पीओ, मांस मत खाओ, चोरी व लूटपाट मत करो, खेती मजदूरी से परिवार का भरण-पोषण करो, बच्चों को पढ़ाओ, स्कूल खुलवाओ, पंचायतों में फैसले करो, अदालतों के चक्कर मत काटो, राजा-जागीरदार या सरकारी अफसरों को बेगार मत दो, इनका अन्याय मत सहो, अन्याय का मुकाबला करो, स्वदेशी का उपयोग करो, आदि।