शहरीकरण की प्रक्रिया का प्रतिकूल प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है। शहरों में कल-कारखानों के खुलने, बेतरतीब भीड़, गाड़ियों और लोगों की लगातार आवाजाही, धूल और गंदगी से पर्यावरण प्रदूषित होता है। शहरों के विस्तार के क्रम में प्राकृतिक वातावरण को नष्ट कर दिया गया था। जंगल का काटना, पहाड़ियों को समतल करना तथा तटीय इलाकों को भूमि के रूप में परिवर्तित करना आदि से पर्यावरण प्रदूषित हुई। हवा पानी को गंदगी ने प्रदूषित कर दिया। शहरों की भीड़, शोर-शराबे ने वायु प्रदूषण को बढ़ाया।
लेकिन धीरे-धीरे नगर नियोजक इन समस्याओं की ओर ध्यान देने लगे। सरकार ने समय-समय पर शहरों के पर्यावरण में सुधार लाने और प्रदूषण को नियंत्रित करने के प्रयास किए। शहर में गंदगी फैलानेवाले इलाकों की सफाई करवाई गई। गंदे कारखाने को शहर से बाहर स्थानांतरित करने का प्रयास किया गया। भारत में पहली बार कलकत्ता में ही धुआं निरोधक कानून 1863 में पारित किया गया। बंगाल धुआं निरोधक आयोग के प्रयासों से कलंकत्ता में औद्योगिक इकाइयों से निकलनेवाले धुएँ पर नियंत्रण लाकर वायु प्रदूषण को कम करने का प्रयास किया गया। इसके पूर्व 1840 के दशक तक इंगलैंड के प्रमुख औद्योगिक शहरों में धुआँ नियंत्रक कानून लागू किए गए।