शहरों में असहयोग आन्दोलन की प्रगति
अथवा
असहयोग आन्दोलन में शहरी मध्य वर्ग की भूमिका
शहरों में असहयोग आन्दोलन की प्रगति का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है-
(1) विद्यार्थियों, शिक्षकों एवं वकीलों की भूमिका- असहयोग आन्दोलन के दौरान शहरों में हजारों विद्यार्थियों ने स्कूल-कालेज छोड़ दिए। मुख्याध्यापकों एवं शिक्षकों ने त्याग-पत्र सौंप दिए। वकीलों ने मुकदमे लड़ना बन्द कर दिया और बड़ी संख्या में आन्दोलन में भाग लिया।
(2) परिषद् चुनावों का बहिष्कार- मद्रास के अतिरिक्त अधिकतर प्रान्तों में परिषद् चुनावों का बहिष्कार किया गया। लेकिन मद्रास में गैर-ब्राह्मणों द्वारा गठित जस्टिस पार्टी ने परिषद् चुनावों का बहिष्कार नहीं किया।
(3) आर्थिक मोर्चे पर असहयोग आन्दोलन का प्रभाव- आन्दोलन के दौरान विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया, शराब की दुकानों पर पिकेटिंग (धरना) की गई और विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई। अनेक स्थानों पर व्यापारियों ने विदेशी वस्तुओं का व्यापार करने से इनकार कर दिया। फलतः विदेशी कपड़ों का आयात आधा रह गया और भारतीय कपड़ा मिलों तथा हथकरघों का उत्पादन बढ़ गया।
शहरों में असहयोग आन्दोलन के धीमे पड़ने के कारण- कालान्तर में शहरों में असहयोग आन्दोलन धीमा पड़ने लगा। इसके निम्नलिखित कारण थे-
(1) महंगा कपड़ा- खादी का कपड़ा मिलों में बड़े पैमाने पर बनने वाले कपड़ों के मुकाबले प्रायः महंगा होता था और निर्धन लोग उसे नहीं खरीद सकते थे।
(2) वैकल्पिक भारतीय संस्थानों की स्थापना की धीमी प्रक्रिया- असहयोग आन्दोलन के दौरान ब्रिटिश संस्थानों का बहिष्कार तो किया गया, परन्तु वैकल्पिक भारतीय संस्थानों की स्थापना नहीं की गई। फलतः विद्यार्थी और शिक्षक सरकारी स्कूलों में लौटने लगे तथा वकील पुनः सरकारी न्यायालयों में वकालत करने लगे।