सविनय अवज्ञा आन्दोलन की प्रगति
(1) दांडी यात्रा- सविनय अवज्ञा आन्दोलन गांधीजी की दांडी यात्रा से शुरू हुआ। मार्च, 1930 में गांधीजी ने अपने 78 विश्वस्त कार्यकर्ताओं के साथ साबरमती आश्रम से दांडी नामक स्थान की ओर प्रस्थान किया। उन्होंने 240 किलोमीटर की यात्रा पैदल चलकर 24 दिन में तय की। 6 अप्रेल को गांधीजी दांडी पहुँचे और उन्होंने समुद्र का पानी उबाल कर नमक बनाना शुरू कर दिया। इस प्रकार उन्होंने नमक कानून का उल्लंघन किया।
(2) सविनय अवज्ञा आन्दोलन की प्रगति- शीघ्र ही सविनय अवज्ञा आन्दोलन सम्पूर्ण देश में फैल गया। अनेक स्थानों पर लोगों ने नमक कानून तोड़ा और सरकारी नमक कारखानों के सामने प्रदर्शन किये। विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया गया तथा शराब की दुकानों पर धरना दिया गया। किसानों ने लगान और चौकीदारी कर चुकाने से इन्कार कर दिया। गाँवों में नियुक्त सरकारी कर्मचारियों ने त्याग-पत्र दे दिए। जंगलों में रहने वाले लोगों ने वन-कानूनों का उल्लंघन करते हुए आरक्षित वनों में लकड़ी बीनना तथा पशुओं को चराना शुरू कर दिया।
(3) ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीति- ब्रिटिश सरकार ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को कुचलने के लिए दमनात्मक नीति अपनाई। इससे लोगों में तीव्र आक्रोश उत्पन्न हुआ। गाँधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया।
(4) गांधी-इरविन समझौता- 5 मार्च, 1931 को गांधीजी तथा वायसराय लार्ड इरविन के बीच एक समझौता हो गया जिसे 'गांधी-इरविन समझौता' कहते हैं। इस समझौते के अनुसार गांधीजी लन्दन में होने वाले द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए सहमत हो गए। इसके बदले में सरकार ने राजनीतिक बन्दियों को रिहा करना स्वीकार कर लिया।
(5) सविनय अवज्ञा आन्दोलन का पुनः प्रारम्भ- द्वितीय गोलमेज सम्मेलन की असफलता के बाद गांधीजी ने 1932 में सविनय अवज्ञा आन्दोलन पुनः शुरू कर दिया। सरकार ने आन्दोलन को कुचलने का भरसक प्रयास किया। एक वर्ष तक सविनय अवज्ञा आन्दोलन चला। परन्तु धीरे-धीरे आन्दोलन शिथिल पड़ने लगा। अतः 1934 में गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को समाप्त कर दिया।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन का महत्त्व-
राष्ट्रीय आन्दोलन को गतिशील एवं व्यापक बनाना-सविनय अवज्ञा आन्दोलन ने राष्ट्रीय आन्दोलन को गतिशील एवं व्यापक बनाया।
महिलाओं में जागृति-इस आन्दोलन के फलस्वरूप महिलाओं में जागृति उत्पन्न हुई।
निडरता, साहस और राष्ट्रीयता का संचार-असहयोग आन्दोलन ने देशवासियों में निर्भीकता, साहस और राष्ट्रीयता की भावनाओं का संचार किया।
ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती-सविनय अवज्ञा आन्दोलन में लोगों ने अन्यायपूर्ण एवं दमनात्मक औपनिवेशिक कानून का उल्लंघन किया।