संविधान सिर्फ मूल्यों और दर्शन का बयान भर नहीं है। यह .एक बहुत ही लम्बा और विस्तृत दस्तावेज है। इसलिए समय-समय पर इसे नया रूप देने के लिए इसमें बदलाव की जरूरत पड़ती है। निर्माताओं को लगा कि इसे भावनाओं के अनुरूप चलना चाहिए और समाज में हो रहे बदलावों से दूर रहना चाहिए। उन्होंने इसे पवित्र स्थायी और न बदले जा सकने वाले कानून के रूप में नहीं देखा था। इसलिए उन्होंने बदलाओं को समय-समय पर शामिल करने का प्रावधान भी रखा । इन बदलावों को ‘संविधान संशोधन’ कहते हैं।