कम्पनी द्वारा 1793 में लागू किये गये स्थायी बन्दोबस्त से निम्न समस्याएँ उत्पन्न हुईं-
(1) कंपनी ने जो राजस्व तय किया था वह इतना ज्यादा था कि उसको चुकाने में जमींदारों को भारी परेशानी हो रही थी। जो जमींदार राजस्व चुकाने में विफल हो जाता था उसकी जमींदारी छीन ली जाती थी। बहुत सारी जमींदारियों को कंपनी बाकायदा नीलाम कर चुकी थी।
(2) बाजार में उपज की कीमतें बढ़ने पर खेती का विस्तार हुआ। इससे जमींदारी की आमदनी में तो सुधार आया लेकिन कंपनी को कोई फायदा नहीं हुआ क्योंकि कंपनी स्थायी राजस्व तय कर चुकी थी। अब वह राजस्व में वृद्धि नहीं कर सकती थी।
(3) जमींदारों को जमीन के सुधार में कोई दिलचस्पी नहीं थी। उनमें से कुछ तो बंदोबस्त के शुरुआती सालों में ही अपनी जमीन गँवा चुके थे। शेष जमींदारों को बिना परेशानी और निवेश का खतरा उठाए आमदनी की उम्मीद दिखाई दे रही थी। जब तक जमींदार किसानों को जमीन देकर उनसे लगान वसूल सकते थे उन्हें जमीन में सुधार की परवाह नहीं थी।
(4) किसानों के लिए यह व्यवस्था बहुत दमनकारी थी। लगान बहुत ज्यादा था और जमीन पर किसान का अधिकार सुरक्षित नहीं था। लगान नहीं चुका पाने पर उसे पुश्तैनी जमीन से बेदखल कर दिया जाता था।