(1) तेरहवीं सदी तक इटली, फ्रांस और ब्रिटेन के कपड़ा उत्पादक कपड़े के उत्पादन के लिए भारतीय नील का इस्तेमाल कर रहे थे।
(2) यूरोप के वोड उत्पादकों ने अपनी सरकारों पर दबाव डालकर नील के आयात पर कुछ पाबंदियाँ लगवाईं।
(3) सत्रहवीं सदी तक आते-आते यूरोपीय कपड़ा उत्पादकों ने नील के आयात पर लगी पाबंदी में ढील देने के लिए अपनी सरकारों को राजी कर लिया।
(4) इससे भारत में नील के उत्पादन को बढ़ावा दिया गया। 18वीं सदी के आखिरी दशकों से ही बंगाल में नील की खेती तेजी से फैली।
(5) साथ ही कैरीबियाई द्वीप समूह स्थित सेंट डॉमिंग्यू में फ्रांसीसी, ब्राजील में पुर्तगाली, जमैका में ब्रिटिश तथा वेनेजुएला में स्पैनिश लोग नील की खेती करने लगे।
(6) उत्तरी अमेरिका के भी बहुत सारे भागों में नील के बागान सामने आ गये। इस प्रकार विश्व में नील की खेती का विकास हुआ।