परागकणों (Pollen Grains) का परागकोश से मुक्त होकर विभित्र विधियों एवं माध्यमों के द्वारा उसी पुष्प या उसी जाति के अन्य पुष्प के जायांग की वर्तिकाग्र (Stigma) तक पहुँचना परागण (pollination) कहलाता है।
1. मक्का के पुष्प एकलिंगी होते हैं।
2. नर पुष्प छोटे एवं अनाकर्षक होते हैं व पादप के शीर्ष पर पाये जाते हैं।
3. मादा पुष्प क्रम पर्णों के कक्ष में लगे होते हैं।
4. नर पुष्प के पुंकेसर लम्बे व मुक्त दोली होते हैं जो हल्की सी हवा चलने पर भी मुक्त दोलन कर परागकणों का प्रकीर्णन करते हैं।
5. परागकण हल्के, शुष्क, छोटे व रोयेदार सतह वाले होते हैं।
6. परागकण अत्यधिक संख्या में होते हैं जिससे कि परागण की क्रिया की प्रायिकता (Probability) को बढ़ाया जा सके।
7. परिपक्व परागकोश के स्फुटन के फलस्वरूप परागकण हवा में मुक्त हो जाते है।
8. चूंकि मादा पुष्प क्रम पर्ण के कक्ष में स्थित होता है और मादा पुष्यों की असंख्य वर्तिकाएं पतले रेशों के रूप में बाहर निकली होती है, अतः वायु में उड़ते परागकण इन वर्तिकाओं पर गिर जाते हैं।
9. इन अनुकूलनों के कारण इनमें वायु के माध्यम से परागण की क्रिया सम्पन्न होती है।
(i) वैलिसनेरिया में जलपरागण - वैलिसनेरिया जल निमग्र एकलिंगी (Dioccous) व ताजे पानी में पाया जाने वाला पादप है। नर पौधा काफी संख्या में नर पुष्प उत्पन्न करता है, जो टूटकर बन्द अवस्था में ही पानी की सतह पर आ जाते हैं। ऊपर आकार नर पुष्प जल सतह पर खुल (Open) जाते हैं। मादा पौधा, मादा पुष्प बनाता है। मादा पुष्प लम्बे कुण्डलित वृन्त पर लगा होता हैं जिससे यह पानी की सतह तक आ जाता हैं। वर्तिकाग्र तीन भागों में बंटी होती हैं। तैरते हुए नर पुष्प, मादा पुष्य के पास आता है और मादा पुष्प के सम्पर्क में आने से नर पुष्पों के परागकोश फट जाते हैं। परागकण वर्तिकाग्र से चिपक जाते हैं। परागण के उपरान्त मादा पुनः बन्द हो जाता हैं। इसका वृन्त कुण्डलित होकर पुष्य को पानी के अन्दर खींच लेता हैं।