(a) पुष्पी पादपों में स्वपरागण रोकने की चार युक्तियाँ निम्नलिखित है -
1. भिन्नकालपक्वता - पुष्प के पुंकेसर व स्त्रीकेसर अलग-अलग समय पर परिपक्व होते हैं। उदा. पीपल, गुड़हल।
2. एकलिंगता - एकलिंगी पादप पर या तो नर या मादा पुष्प बनते हैं। अतः स्वपरागण की सम्भावना समाप्त हो जाती है। उदा. पपीता।
3. स्वबंध्यता - एक पुष्प के परागकण उसी पुष्प की वर्तिकाग्र या उसी
पादप पर लगे अन्य पुष्प की वर्तिकाग्र पर पहुँचने पर अंकुरित नहीं हो पाते या परागनली की वृद्धि अवरुद्ध हो जाती है। इसे स्व-असामंजस्य या स्वबंध्यता कहते हैं। उदा. आर्किड (Orchids)
4. हरकोगेमी (herkogamy) - परागकोश व वर्तिकाग्र के बीच प्राकृतिक संरचनात्मक अवरोध होने के कारण एक पुष्प के परागकण उसी पुष्प की वर्तिकाग्र पर नहीं पहुँच पाते ।उदा. आक (Calotropis)
(b) सजातपुष्पीय परागण में एक पुष्प के परागकण उसी पौधे के किसी दूसरे पुष्प की वर्तिकाग्र पर पहुँचते हैं। एक पौधे पर उपस्थित सभी पुष्प आनुवांशिकीय रूप से समान होते हैं, अतः इसे आनुवांशिकीय स्वयुग्मन भी कहा जाता है।