आदि-औद्योगिक व्यवस्था से शहरों और गाँवों के बीच एक घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित हुआ। यद्यपि सौदागर शहरों में रहते थे, परन्तु उनके लिए ऊन खरीदने, सूत कातने, बुनकर, फुलर्स तथा रंगसाजी का काम अधिकतर गाँवों में चलता था। लन्दन में तो कपड़ों की फिनिशिंग होती थी।