आर्थिक महामंदी- आर्थिक महामंदी की शुरुआत 1929 से हुई और यह संकट 1930 के दशक के मध्य तक बना रहा।
महामंदी की विशेषताएँ-
कीमतों में कमी और मंदी की आशंका को देखते हुए अमेरिकी बैंकों ने घरेल कर्ज देना बन्द कर दिया और जो कर्ज दिये जा चुके थे, उनकी वसूली तेज कर दी गई तथा अनेक लोगों की सम्पत्ति कुर्क कर ली गई।
कई देशों की मुद्रा की कीमतें गिर गईं, बेरोजगारी बढ़ी, अमेरिकी बैंकिंग व्यवस्था धराशायी हो गई थी तथा विश्व व्यापार की कमर टूट गई थी।
महामंदी के कारण-
(i) कृषि उत्पादों का अतिउत्पादन- कृषि उत्पादों की गिरती कीमतों के कारण किसानों की आय में कमी हुई जिसे पूरा करने के लिए उन्होंने उत्पादन बढ़ाने का प्रयास किया। परिणामस्वरूप बाजार में कृषि उत्पादों की वृद्धि हो गई और उनकी कीमतें और नीचे चली गईं। खरीददारों के अभाव में कृषि उत्पादन सड़ने लगा था।
(ii) अमेरिका से कर्जा न मिलना- 1920 के दशक के मध्य में अनेक देशों ने अमेरिका से कर्ज लेकर अपनी निवेश सम्बन्धी आवश्यकताएँ पूरी की थीं। परन्तु संकट का संकेत मिलते ही अमरीकी उद्योगपतियों में घबराहट उत्पन्न हुई। 1928 के पहले 6 माह तक विदेशों में अमेरिका का कर्जा एक अरब डालर था। सालभर के भीतर यह कर्जा घटकर केवल चौथाई रह गया था। जो देश अमेरिकी कर्जे पर सबसे अधिक निर्भर थे, उनके सामने गहरा संकट उत्पन्न हो गया।