विकासशील देशों द्वारा वैश्वीकरण की नीति अपनाने के लिए उत्तरदायी परिस्थितियाँ विकासशील देशों द्वारा वैश्वीकरण की नीति अपनाने के लिए निम्नलिखित परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं-
(1) अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों में परिवर्तन- बीसवीं शताब्दी के सातवें दशक के मध्य अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों में भारी परिवर्तन आ चुके थे। अब तक विकासशील देश ऋण और विकास सम्बन्धी सहायता के लिए अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों की सहायता ले सकते थे परन्तु अब उन्हें पश्चिम के व्यावसायिक बैंकों और निजी ऋणदाता संस्थानों से ऋण न लेने के लिए विवश किया जाने लगा। परिणामस्वरूप विकासशील देशों में विभिन्न अवसरों पर ऋण संकट उत्पन्न होने लगा जिसके कारण आय में गिरावट आती थी और निर्धनता में वृद्धि होने लगी थी। अफ्रीकी तथा लैटिन अमेरिकी देशों में इस प्रकार की समस्या बड़ी विकट थी।
(2) विकसित देशों में बेरोजगारी- विकसित देश भी बेरोजगारी की समस्या से परेशान थे। नब्बे के दशक के प्रारम्भिक वर्षों तक वहाँ पर्याप्त बेरोजगारी रही। सत्तर के दशक के अन्तिम वर्षों से बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भी एशिया के ऐसे देशों में उत्पादन केन्द्रित करने लगीं जहाँ वेतन कम थे। परिणामस्वरूप विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने इन देशों में निवेश करना शुरू कर दिया। यहाँ टेलीविजन, मोबाइल फोन, खिलौने बड़े पैमाने पर बनाये जाने लगे।
वैश्वीकरण का प्रभाव- उद्योगों को कम वेतन वाले देशों में ले जाने से. वैश्विक व्यापार और पूंजी प्रवाहों पर भी प्रभाव पड़ा। पिछले दो दशक में भारत, चीन और ब्राजील आदि देशों की अर्थव्यवस्था में आए परिवर्तनों के कारण विश्व का आर्थिक भूगोल पूर्णरूप से बदल चुका है।