अर्स्ट रेनन एक फ्रांसीसी दार्शनिक था। उसने सन् 1882 में सॉबॉन (Sorbonne) विश्वविद्यालय में दिये एक व्याख्यान में राष्ट्र की व्याख्या निम्न प्रकार की-
उसने इस विचार की आलोचना की कि राष्ट्र समान भाषा, नस्ल, धर्म या क्षेत्र से बनता है।
उसके अनुसार एक राष्ट्र लम्बे प्रयासों, त्याग और निष्ठा का चरम बिन्दु होता है।
एक राष्ट्रीय विचार शौर्य-वीरता से युक्त अतीत, महान पुरुषों के नाम और गौरव पर आधारित किया जाता है।
अतीत में समान गौरव का होना, वर्तमान में एक समान इच्छा, संकल्प का होना, साथ मिल कर महान काम करना और आगे, ऐसे काम और करने की इच्छा - एक जनसमूह होने की यह सब जरूरी शर्ते हैं।
अतः राष्ट्र एक बड़ी और व्यापक एकता (Large-Scale Solidarity) है उसका अस्तित्व रोज होने वाला जनमत-संग्रह है। प्रांत उसके निवासी हैं।
किसी देश का विलय करने या किसी देश पर उसकी इच्छा के विरुद्ध कब्जा जमाए रखने में एक राष्ट्र की वास्तव में कोई दिलचस्पी होती नहीं है।
राष्ट्रों का अस्तित्व में होना एक अच्छी बात है उनका होना स्वतंत्रता की गारंटी है।